SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनहर्ष ग्रंथावली उत्तम सेती प्रीतड़ी, कीजइ तउ सुख होइ।। जनमंतर पहिडइ नही रे, अपयश न कहइ कोइ ॥६तो०॥ साहिब सुनजर थइ लहुं, भवसायर कउं पार । कहइ जिनहरख निवाजीयइ रे, कीजइ प्रभु उपगार ॥७तो०॥ श्री पाली मंडन नवलखा श्री पाश्वनाथ स्तवनं दाल !! तु तउ म्हारा साहिबा रे गुजराति रा || एहनी साहिवा वेकर जोड़ी वीनव, साहिबा वीनतड़ी अवधारि कि । तुं तर म्हारा साहिबा रे श्रीपासजी, साहिबा सेवक सुपरि निवाजीया, साहिवा, आपणउ विरुद संभारि कि ॥ १॥ साहिवा सूरति ताहरी निहालतां. साहिव नयण ठरह मुझ दोइ किन्तु मुझहीयडोहरखइ हेजसं सा। तुझ मुख सनमुख जोइ किरतु सा।। राति दिवस हाजिर रहुं सा। चरणे रहुं लपटाइ कि ॥सा । तु॥ आठ पहुर ऊभउ थकउ ।सा। सेव करूं चितलाई कि ॥३तुसा।। माहरी तुझसुं प्रीतड़ी सा। अबिहड़ वणी बहुं भांति कि ।तुसा। तेतर कदी न ऊतरह सा। जउ युग जाइ अनंत कि ॥४तुं सा ।। माहरा वंछित पूरवर सा। जिम पामउ साबासि कि । तुं सा। पालीमंडण नवलखा ।सा। जिनहरख सफल अरदास कि ।। ५ तुं नींचाज-श्री पार्श्वनाथ स्तवन राग | सारग मल्हार ।। नयर नीवाज दीपतउ रे, परतखि पास जिणंद । सूरति मूरति मोहणी लाल, दीठां होइ आणंद ॥ १ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy