SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० श्री जिनहर्प ग्रन्थावली श्री चारूप पार्श्वनाथ स्तवन ढाला || चादा करिलाइ चाद्रणउ || एहनी श्री चारूपईपासजी, मनमोहन साहिब दीठउ रे। मन विकस्यउ तन उलस्यउ, पूरव भव पातक नीठउ रे ॥१श्री।। जनम सफल थयउ माहरउ, आज पुण्य दशा मुझ जागी रे। आज सुकृत फल पामीयउ, जउ भेट्यउ सरवसु त्यागी रे।।२श्री।। लोयण मुझ लागी रह्या, प्रभु मूरति देखि सुरंगी रे । जाणुं विछड़ीयइ नही, मूरति लागइ चित चंगी रे ॥३श्री।। ए साहिबनी चाकरी, कर जोड़ी निसिदिन कीजइ रे। भाव भागति इक चित थइ, मन बछित तउ पामीजइ रे॥४श्री।। मोटानी सेवा कीयां, निष्फल किम ही नवि जायइ रे। सोम नजर राखइ सदा, फल प्रापति सारू थायइ रे ॥श्री।। साहिब नइ देखी करी, हितस्युं मुझ हीयड़उ हीसइ रे। परतखि छइ काइ मोहणी, पासइ रहीयइ निसि दीसइ रे॥६श्री।। धरणींद ने पदमावती, कर जोड़ी सेवा सारइ रे । सेवक नइ सानिधि करइ, जिनहरख सकल दुख वारइ रे ॥७श्री।।। श्री भटेवा पार्श्वनाथ स्तवन ढाल | विंटली नी ॥ मृरति प्रभुनी सोहइ, सुर नर मुनिजन मनमोहइ हो। पास भटेवउजी. तेजह दिनकर दीपइ, रागादिक वयरी जीपइ हो ॥१पा।। पास भटेवउ सेवउ, कृष्णागर धूप उखेवउ हो । पा० ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy