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________________ २८५ श्री विजय चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन श्री विजय चिंतामणि, पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || रसीयानी॥ विजय चिंतामणि पास जुहारीयइ, प्रह ऊगमतइ रे सूरि। गुण रसीया मधुर सुरइं प्रभुना गुण गाईयइ, भाव हीयइ धरी रे पूर ।।गु०१॥ वंछित पूरण सुरतरु सारिखउ, रतन चिंतामणि रे एह ।ग०। कामगवी सुर-कुंभ ऊपम धरइ, धरिये तेहसं रे नेह ।।ग०२।। नयण चकोर तणी परि ऊलसइ, देखि प्रभु मुख चंद । गु० । एक पलक पिणि न रहइ वेगला, मोह तणइ पड्या रे फंद ।।ग०३ ।। ए प्रभु नइ छइ दास घj घणा, सेवइ अहनिसि रे पाय |गु०॥ सेवक नइ तउ साहिब एक छइ, अवर न आवडू रे दाय ।।ग०४॥ पाच तजी कुण काच भणी ग्रहइ, गज तजि खर ल्यइ रे कुंण । कंचण तजी कुंण पीतल संग्रहइ, घन तजि कुंण ल्यइ रे लण ॥शा अवर सुरासुर नी सेवा करइ, कुण तजि त्रिभुवन र नाथ ग० ए साहिब जउ तूसइ तर सही, आपइ अविचल रे आथि ॥६॥ ___ एक चित जउ एह सुं राची रहइ, राखइ आपण रे पासि ।गन । पिणि साचइ मन न हुवइ चाकरी, तउ किम पूगइ रे आस ॥७॥ सेवक काचउ पिणि साचउ धणी, किम ऊवेखइ रे तेह ।गु०॥ सिशिधर जोइ सिसिलउ राखी राउ, सुगुण दाखइ रे छेह ।।८॥ बामा कूखि सरोवर हंसलट, आससेण कुल अवतंस । गु० । चाचरीयइ प्रभु अचल विराजीया, करइ जिनहरख प्रसंस ॥६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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