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________________ [ . २३ ] जे में एसो जानती, प्रीत कियां दुख होय । नगर ढढेरो फेरती, प्रीत न करियो कोय ॥ (मीरांवाई) ३-बीजुलियां खलभल्लिया, आभे आभे कोडि । कदे मिलेवें सजना, कचू की कस छोडि ॥१७॥ वीजलियां गली वादला, सिहरा माथै छात। कदे मिलेमुं सजना, करी उघाडी गात ॥१८॥ वीजलियां चमके घणी, आभइ-आभइ पूरि । कदे मिगी सजना, करि के पहिरण दूर ॥१६॥ (बरसात रा दहा, पृ० ४२४) वीजुलिया चहलावहलि, आभइ-आभइ एक । कदी मिलू उण साहिवा, कर काजल की रेख॥४४॥ वीजुलियां चहलावहलि, आभइ आभइ च्यारि । कद रे मिलउली सजना, लांबी वांह पसारि ॥४५॥ 'वीजुलिया चहलावलि, आभय आभय कोडि । कद रे मिलउली सजना, कस कचुकी छोडि ॥४६॥ (ढोला मारू रा दूहा ) ___ इस प्रकार मुनि जिनहर्ष के काव्य पर विचार करने से उसमें अनेक प्रकार की विविधता दृष्टिगोचर होती है और वे एक साथ ही समर्थ एवं सरस कवि के रूप में प्रकट होते हैं। वे परम भक्त है और उद्बोधक हैं । वे प्रेममार्गी हैं और नीतिज्ञ हैं । उन्होंने अपने समय की सभी काव्यशैलियो में रचनाए प्रस्तुत करके साहित्य के भडार को भरा है। उन्होने
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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