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________________ कापरहेडा पार्श्वनाथ स्तवन २७३ अरज करूं सफली हुवै रे, ताहरी वाधै लाज रे । सां। फलै मनोरथ माहरो रे, एक पंथ दोय काज रे ॥ ६॥ सां० हुँ पिण छं इक ताहरो रे, सेवक विश्वाचीस रे । सां। . कापडहेडै पासजी रे लाल, कहे जिनहरख जगीसरे ॥ ७ ॥ सां० इति श्री कापड़हिड़ा पार्श्वनाथ स्तवन कापरहेडा पार्श्वनाथ लघु स्तवन वारी रे रसिया रग लागो ।। ढाल वीदली ।। मोरा लाल अंग सुरंगी अंगीया, । कंकुम' चंदण री खोल । मोरा लाल. आगल नाचे अपरा. गीतां रा रमझोल ॥मोरा लाल०॥१॥ पास जिणंदसं मन लागौ, रंगलागौ चित चोल । मोरालाल आं० मोरा लाल मूरति मोहण वेलड़ी, दीठां आणंद होइ। मोरा लाल। सौ वेला जो निरखीयै, नयणा अत्रिपता तोइ । मोरा लाल ॥२॥ मोरा लाल हियड़ा माहे वसि रह्यौ, मोहनगारौ नाम मोरालाल। सूतां ही सुपनै मिलै, सीझै सगलां काम मोरा लाल॥३॥पा० मोरा लाल देव घणा ही देवले, दीठा ते न सुहाइ। मोरा लाल। __ भमरौ मोह्यौ केतकी, अलविन अरणी आइ ॥ मोरा लाल ॥४पा० मोरा लाल चातक' जलधर नै नमै, अवर न नामे सीस मोरा लाल। १ केसर २ रंग ३ आवै दाय ४ त्रिपत न थाय ५ राज ६ प्रभु। ७.वंछित काज ८ घर-घर देव अछै घणा, ते मुझ नावै दाय । ९ राचं १० चातक मन जलधर वसे, अवर न आवे चीत। -
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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