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________________ २७० श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री कापरहेडा पार्श्वनाथ वृद्ध स्तवन ढाल {} मल्हार रीवाल्हेसर सुणी बीनती हो माहरा श्री महाराज, सेवक सुपर निवाज नै, सारो सगला ही काज हो । जिम वाधै त्रिभुवन लाज हो, भवसायर तूं तो जिहाज हो । तुझ भेद लहयो मैं आज हो, साचौ साहिब सिरताज हो, कापरहेड़ा श्री पास जी ॥१॥ महियल महिमा ताहरी हो, कहितां नावै पार । चाचौ तीरथ चिहुं दिसे, करिचा आवै दीदार हो। हियड़े धर भाव अपार हो, नर नारी कर सिणगार हो । गुण गावै राग मल्हार हो, बलिहारी प्राण आधार हो ॥२॥ साहिब सुरतरु सारिखो हो, अधिकी पूरो आस । चिंता चूरे चित्तनी, बारु लहिये लील विलास हो । अन्तरजामी अरदास हो, करुं हियडै धरिय उल्हास हो । नयणे निरखो निज दास हो, भांजो दुख गरभावास हो ॥३॥ दादौ दुनियां दीपतो हो, समरथ त्रिभुवन साम । एका थापै उथपे, एकां विस्तारे मांम हो । भरपूर भंडारे दाम हो, काढ़े सबला तूं काम हो । सूभर भरीयां धौ धाम हो, सहुको गावे गुण ग्राम हो ॥ ४ ॥ सांम तुम्हारा नाम थी हो, लाभे राज भंडार। . मणि माणिक मोती घणा, रथ पायक बहु विस्तार हो ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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