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________________ फलौधी पार्श्वनाथ स्तवन २६५ गुण ताहरा हियरे वस्या, लाग्यो गाने अमोल रे । सा०' . लै लागी तुझ नाम सं, हिवे मिल अन्तर खोल रे ॥४॥ सा० सिद्ध कि सति नै नम्यां, जे न करै उपगार रे । सा० 'निगुण निहेजां कीजिये, ऊमा ऊभ जुहार रे ॥५॥ सा० प्रारथीया पहिड़ नही, तिण सं कीजै प्रीत रे । सा० प्राण सनेही ओलख्यौ, सा० तहिज अविहड़ मीत रे ॥६॥सा० कामणगारा पास जी, सा० सूरत अजब दिखाइ रे । सा० तैं मन मोह्यौ मांहरौ, दीठां अधिक सुहाय रे ॥७॥ सा० देखं त्यं मन ऊलस्यै, प्रीतम प्रांण आधार रे । सा० कहे जिनहरख सदा हुज्यो रे, भव भव तुझ दीदार रे ॥८॥सा. इति पार्श्वनाथ स्तवनं फलौधी पार्श्वनाथ स्तवन __ ढाल-सदा सुहागण __ आज सफल दिन मांहरो रे, मेट्यो जिनवर पास रे लाल फलवधि नायक गुणनिलौ, पूरै वंछित आस रे ॥१॥ मेरो रंग लागो जिन नाम सुं, ज्यु पट चोल मजीठ रे लालाआंग ___ अपराधी तें ऊधस्या, आगे ही नर कोड़ रे लाल * एह सुजस सुण आवीयो, भव..........॥२॥ (अपूर्ण)
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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