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________________ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवनं दाल || चउपाईनी॥ सकल सुरासुर सेवइ पाय, कर जोड़ी ऊभा सुर राय । गुण गावइ इन्द्राणी जास, पण, श्री संखेसर पास ॥१॥ व्हनइ नामइ नव निधि थाइ, पाप तमोभर दूरई जाइ । महियल मांहि वधइ जसवास, पणमूं श्री संखेश्वर पास ॥२॥ लखमी मंदिर थाइ अखूट, रायराणा कोई न सकइ लूटि । संपति सदन रहइ थिर वास, पणमं श्री संखेश्वर पास ॥३॥ सहु,को जेहनी मानइ आण, तेज प्रताप वधइ जिम भाण । लहियइ वंछित भोग विलास, पणमं श्री संखेश्वर पास ॥४॥ बीछड़ीयां वाल्हेसर मिलइ, वइरी दुसमण दूरइ टलइ । नासइ दुष्ट कुष्ट खस खास, पणमं श्री सखेश्वर पास ॥शा जरा उतारी जादव तणी, वाधी कीरति प्रभु नी घणी। हरि पूयु तिहां संख उलास, पणमुं श्री संखेश्वर पास ॥६॥ घरणिधर नइ पदमावती, जेहनी भगति करइ सासती । दुख चूरइ पूरइ मन आस, पणमुं श्री संखश्वर पास ॥७॥ बेहनी आदि न कोई लहइ, गीतारथ गुरु इणि परि कहई। महिमा ताँ लगी धू कैलास, पणमुं श्री संखेश्वर पास ॥८॥ ग्रह ऊठी नइ ध्यावइ जेह, दुखीया थाइ नही नर तेह । ऊहइ जिनहरख तास जग दास, पणमुं श्री संखेश्वर पास ॥६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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