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________________ पार्श्वनाथ स्तवन सुन्दर रूप हामणउ हो, शोभा वरणी न जाइ, सुरगुरु पार लहइ नहीं हो, सहस रसन गुण गाइ । ४ । -नील कमल दल सामलउ हो, अससेन वामानंद हो, भेट भई जिनहरखसुं हो, दूरि गए दुख दंद | ५ | श्री पार्श्वनाथ स्तवन २५१ ढाल || अलवेलानी ॥ 1 सुणि सोभागी साहिब रे लाल, एक करू' अरदास । मोरा जीवनांरे । सेवक जाणी आपणारे लाल, पूरउ मननी आस || मो० १ सु ।। च्यारे गति मांहे भयउ रे लाल, पाम्यां दुख अनंत । मो० । जामण मरण कीया घणा रे लाल, अजी न आव्यउ अंत || मो २ सु ।। छोड़ाव तेहथी हिव रे लाल, भयभंजण भगवत । मो० | सरणइ आयउ ताहरइ रे लाल, भांजउ भवनी भंति ।। मो० ३ सु ।। मुझन पीड़ पापीया रे लाल, आठ करम अरिहंत । मो० । करम तणउ स्यउ आसरउ रे लाल, जउ पखउ करइ बलवंत || मो४सु || बलवंत तुझ सारिखउ रे लाल, कोइ न दीठउ नाह । मो० । चरण सरण मह आदर्या रे लाल, पाप मतंगज गाह || मो ५ सु || जाइ अवर द्वारांतर रे लाल, परिहरि तुझ दरबार । मो० । क्षारोदधि जल ते पीयड़ रे लाल, करि अमृत परिहार || मोसु || सठ हठ मूढ कदाग्रही रे लाल, स्युं जाणइ तुझ मर्म । मो० । सहु परि खाते लेखइ रे लाल, भूल्या मिथ्या भर्म । मो० ७सु ॥ तेहिज तुझन लेखवर रे लाल, जास अलप संसार । मो० । I I
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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