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________________ २४० श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली उपगारी तूं भारी खमउ, गुण सायर तू गंभीर रे । मुझ आठ करम अरि पीड़वर, छोड़ावर आवउ भीर रे || जउ साहिबनी सुनजरि हुबइ, तउ भांजु जमनी फउज रे । करुणा आणी मुझ ऊपरई, मनमानी दीजड़ मउज रे | ६ | तुझ सरिखउ जउ माहरड़ धणी, न धरूं केहनी परवाह रे । सुहुंणा ही मांहि धरू नही, वीजउ कोई सिरनाह रे । ७ । मुझ नड़ तउ आस्या छह घणी, स्युं कहीयइ लेई नाम रे । तुझ आगलि कहतां लाजीयह, पिणि आपर अविचल ठाम रे | ८ | सफली करिज्यो मुझ वीनती, वाल्हेसर वामानंद रे । श्री पास जिणेसर करि मया, आवउ जिनहरख आणंद रे || पार्श्वनाथ स्तवन || ढाल -ऊचर गढ ग्वालेर कउ रे मनमोहना लाल पास जिणेसर वीनती रे मनमोहना लाल, करु प्रभुजी सिरनामी हो । जगजीवना लाल, दरसण द्यउ दउलति हुवइ रे म० पामूं वंछित काम हो । १ जा परम सनेही माहरइ रे म० तुझ विण अवरन कोइ हो । ज । इणि अणीयाले लोयणे रे म० साहिब साम्हउ जोड़ हो । २ ज । आंखडीयां तरसइ घणं रे म० देखण तुझ दीदार हो । ज । B सेवक करि जाणिस्यउ रे म० तर करिस्यउ उपगार रे । ३ जा उपगारी उपगार न रे म० सिरज्या सिरजणहार हो । ज । पात्र कुपात्र विचारणा रे म० न करइ जे दातार हो । ४ ज ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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