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________________ २३४ श्री जिनहर्ष प्रन्थावली श्री पार्श्व लघु स्तवन " ढाल-थे सौदागर लाल चलण न देस्य वयण अम्हारौ लाल हीयड़ धरीजै, सेवक ऊपरि साहिव महिर करीजै लाल । पास जिणेसर लाल अरज सुणीजै, 1 अरज सुणीजै, अंतर खोलि मिलीजै लाल । पास जिणेसर वाल्हा - अ० तुझ विण कोइ लाल, अवरन घ्यावं, तुझ विण अवरन हीयड़े रहाउ लाल || १ पा०|| परतिख तूं तौ लाल कांमणगारौ, तनमन हेरी लीधुं तं तौ अम्हारो लाल । अन्न न भावै लोल, पाणी न भावै, दीठां पाखै रे वाल्हा नींद न आवै लाल | २ पा०| मैं तो तम साथै लाल प्रीत वणार, प्रीति वणाई तिण में खोटि न काई लाल । राति दिवस लाल तुझ नै चीतारू, सूतां सुपनां में वाल्हा अधिक संभारू लाल | ३ पा०| हूं तौ राखूं छं लाल आस तम्हारी, आस पूरविज्यौ थे छौ पर उपगारी लाल । जे गिरुआ ते तो छेह न दाखें, पोता ना जांणी सहुकोना मन राखे ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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