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________________ २२८ जिनहर्ष प्रन्थावली सेवकने साहिब साहिब साधारउ, दुख्य निवारउ, जिम दीपउवड़दावर मोटा ने कहता लाजीजे, पिणिकी कीज, मांग्यां विणिन लहीजेलो । दीजह हिवह जिनहरख सनेही सुख्य निरेही, कासुंघणउ कहीजइलो ॥ पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || लाहर लेज्यों जी ॥ एहनी भावर पूजर जी, दोहीलउ नर भव पामी । श्री संखेश्वर सांमी, भावइ पूजउ जी ॥ भा ॥ भाव भगति सुं सिरनामी, जगजीवन अन्तरजामी ।१ भा । केसर भरीयइ कचोली, सुन्दर सारीखी टोली । भगती भांभर भोली, पाय नेवरीयां रमझोली ॥२ भा ॥ टोडर कुसुम चड़ावउ, भावन बहुपरि भावउ । भा । श्री जिन ना गुण गावड, जिम भव मांहि न आवउ || ३ भा || कृष्णागर अगर सुंगन्धा, उखेवउ छोड़ी सहु धन्धा । भा | पुण्य तणा पड़ड़ चंधा, पामइ अमरापुर सन्धा ॥ ४ भा ॥ साहिब सिव सुखदाता, एसुं रहीयइ जउ राता । भा । पालइ बालक जिम माता, सगली पूरइ सुख साता ॥ ५ भा ॥ सुन्दर सूरति सोहइ, ए सहुना मन मोहड़ | भा ॥ ए सम अवर न कोहह, भव भवना पाप अपोहड़ || ६ भा ॥ साहिब सुगुण सनेही, थायेइ नही निसनेही । भा । वाल्हेसर मुझ प्रभु एही, जिनहरख वारुं मुझ देही ॥ ७ भा ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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