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________________ पार्श्वनाथ स्तवन पार्श्वनाथ लघु स्तवन ढाल || पजावी री राग काफी सिन्धु मूरति मोहणगारी दिट्ठड़ां आवै दाय । चरण कमल तड्डे सोहियां, मन भमर रह्यो लोभाय ॥१॥ सनेही पास जिणंदा वे, अरे हां सलणे पास जिणदा वे |आ० तूं ही यार सनेही साजन, तूं ही मैडा पीऊ । नैणे देखण ऊमहै, मिलवे कूं चाहे जीव ॥ २ ॥ स० हीड़ा भीतर तूं ही बसे है, और न कोई सुहाय । सांमलिया बलि मैं जाउ तैंडी, मोहसु प्रीत लगाय || ३ || स० आस असाठी क्युं नही पूरे करूंअ तुसांठी आस । लाज रखोगे आपणी, करिहउ सफली अरदास ॥ ४ ॥ स० श्री अससेण वामा दा पूता, आसत सपत जहान । दीनदयाल मया करउ, जिनहरख धरह मन ध्यान ||२|| स० ॥ इति श्री पार्श्वनाथ लघु स्तवन ॥ पार्श्वनाथ स्तवन ↑ २२५ ढाल || सोहला नी ॥ मनना मानीता हो साहिब सांभलउ, सेवक नी अरदास । तेन दाखवियह हो हीयड़उ खोलिनइ, जिणि सुं मन इकलास । १ घणां दीहांरउ हो अलजउ मुझ हुतउ, देखण तुझ दीदार | भाग संजोगइ हो भेट्या पासजी, सफल थयउ अवतार ॥ २ म|| धन धन आज दिवस ऊगउ भलउ, मिलीया वाल्हा मीत ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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