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________________ [ १७ ] थानिक-थानिक घट्ट | वदे सुर नर त्रय वखत, गावे जस मिलिमिल गुणी, गीत गुणे गहगट्ट ॥ ४ ॥ ( छंद त्रोटक ) गहगट्ट सदा नर गीत गुणे । थिर थानिक थानिक जस्स थुणे ॥ महिमा नव खड अखड मह । गह पूरत मत्त मसत गह ॥५॥ ( गणेशजी रो छद, पृ० ३६५-६६ ) ( २ ) पारंभ करी परमेसरी, केहर चढी सकोप | अडीया सन्मुख कोप ॥१॥ असुर तथा दल आय ने, रगत नॅण रातमुखी, रातंबर से साल | वैताल ॥२॥ सहस भुजे हथियार सझि, विड रूपण असुर निकै असलामरा, मिलीया वेढक मल्ल । देवी ने देता दल, हूकल लागी हल्ल ॥३॥ ( छंद पाढगति ) हल्ल हल्ल लागी हूक, टोले ऊडै लोह टूक, सागडदा गिड़दा वाजे सोक, बेरियां विचाल । सणण वहत सर, सूरिमा फिर समर, 'गडड वाजत गोला, 1 नाडिग्डिदा नाल ॥५॥ (देवीजी री स्तुति, पृ० ३६८-६६ ) *
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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