SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजुल बारहमास २२१ सवैयो श्रावण मास करी घनघोर, सजोर, सुघोर दमामो बजावत आयो । जलधर वरसत चात्रक बोलत, दादुर मोर सजोर करायो || चमकत दांमनी झूरत यांमनी, सालत देह में दुख सवायो । कुंकुम काजर मेलत कूंपलि, अंग आभूषण सरख मिटायो ॥ ६ ॥ दूहो भाद्रवड़ो' भर गाजीयो', नदी खलक्यां नीर । बपीयौ ' पिउ पीउ करें, घरि आवो नणद रा वीर ॥ १० ॥ सवैयो । भाद्रव वरखत मेह अहोनिसि, निरमल नीर सरोवर भरीया । नदी नाल प्रनाल वह असराल, सुगाल भये सव डूंगर हरीया । निरखत नैण सुर्वेण न बोलत, नाम रिदै अक प्रीतम धरीया । और कछु नवि मांनत देवकुं, दीसत देवल पथर परीया ॥ १० ॥ दूहो आसू मास विदेस पीउ, विरह लगायो " बांण । सेझड़ीयां बिस घोलीयो, मन्दिर हुयो मसांण ॥ ११ ॥ सवैयो आसू गयो मोह जोवतां चाटड़ी, नावत कन्त अजेय सहेली | १ भादवड़ो २ जागीयो ३ बापहीयो ४ पीउ पीउ, ५ सुणे नणद, ६ थीए, ७ लगावे, ८ भयो ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy