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________________ नेमि राजिमती गीत २०५ आपण आदरीयां हो, नेमी विरची जई। हसिस्यइ सहु फिरियां हो, यादवराय अरज सुणउ ॥७॥ मइ तउ जाण्यउ न हुतउ हो, विरचिसि वालहा। गिरनार पहुंतउ हो, यादवराय अरज सुणउ ॥ ८॥ राणी राजुल जंपइ हो, संयम लेइ मिले। जिनहरष पयंपइ हो, यादवराय अरज सुणउ ।। ६ ॥ ' नेमि राजमती गीत - ढाल-सूरिजरे किरणे हो राजि माथउ गुथायउ । राजुल विनवे हो राजि, पुन्यइ में पायउ । मुझ ने छोड्नेि हो राजि, फेरि सिधायउ ॥१॥ फेरि० ।। सिवादे राणी रउ जायउ राजि किणि विलंबायउ । हरष धरीने हो राजि तोरण आयउ, मुझने परणेवा हो राजि अधिक ऊमाघउ ॥२॥ अधिक । मइतउ तुम तुमसुं हो राजि अंग लगायउ, मन ना मानीता हो राजि तुझ न सुहायउ, ॥ तुझ न०३ सि । मुगति नारी सुं हो राजि, प्रेम वणायउ । मुझ सु अधिकी हो राजि, जाणी नइ नायउ ॥ जा०४ सि ।। तेतउ धूतारी हो राजि, भेद न पायउ । चतुर हुँतउ हो राजि, पिणि तूं ठगायउ । पि० ५ सि ।। राजुल राणी हो राजि, चित मिलायउ । व्रत संजिनहर्ष हो राजि, पिउनइ वधायउ ॥ नि० ६ सि ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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