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________________ १४० आदिनाथ स्तवनानि हिंसक जे हतीयारड़ा जी, पातकी जे नर होई । ए गिरि दरसण फरसाई जी, सुगति पामड़ सही सोइ ॥ ३वि ॥ एह तीरथ समउ को नही जी, जोवतां त्रिभुवन मांहि । अनंत तीर्थंकर हम कह जी, नवनिधि नाम थी थाइ ॥। ४वि ॥ सरथ तथा धन्य श्रादमी जी, शत्रु जय दरसण पामि । सफल कर भव आपणउ जी, कहड़ सीमंधर सामि || || सिद्धि इणि गिरि अनंता थया जी, वली हुस्य काल प्रमाण | एह गिरि राज छह सास्वतउ जी, ज्ञानी वदड़ इम वाणी ॥६॥ जेह विधि सु कर यातरा जी, छहरी पालड़ घरी भाव | कहइ जिनहरख नर नारि नह जी, मत्र जलधि तारिवा नाव | ७ व इति श्री शत्रु जय स्तवन श्रीविमलाचल मंडण श्री चतुमुख रिषभदेव स्तवन || ढाल - मारू राग ॥ खरतर वसही यदि जिणंद जुहारीयइ रे । शत्रुज गिरि सिणगार, चउगति रे २ आवागमण निवारीयइ रे |१| ऊलट भावधरी नपणे निति जोईयह रे । चउमुख प्रतिमा च्यारि, भवना रे २ पातक कसमल धोईयड़ रे |२| सुंदर मूरति सूरति अधिक सुहामणी रे । दीठां जाय दुक्ख, साता रे २ थायड़ मन माहे घणी रे || ३ || आशापूरण सुरतरु सुरमणि सारिखउ रे | उपगारी अरिहंत, ताहरी रे २ जोडि न को ए पारिखउ रे ||४|| ५
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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