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________________ १२० जिनहर्प-ग्रन्थावली सज्जण हियडै बसि रहया, नयणै नवि दीसंति । जमवारो किम जायसी, मुझ मन सवळी चिंत ॥३१॥ नमणा खमणा बहु गुणा, कंचन जिम कसियांह । एहा सज्जण माहरै, हीयड़ा में बसियांह ॥३२॥ सज्जण सेती गोठडी, जे मेलै जगदीस । हित सूहियड़ा ऊपरे, तउ राखू निसदीस ॥३३॥ सज्जण तू मो बालहो, जेहो वाल्हो दाम । आठ पहुर हियड़ा थकी, कदे न मेलू नाम ॥३४॥ सज्जण थया विदेलड़इ. क्यू करि मिलियै जाई । देव न दीधी पांखड़ी, न मिला कोई उपाइ ॥३५॥ मुख मीठा दीठा गमइ, अमी अरया दोय नैण । सज्जनिया सालै नहीं, सालै सज्जन वैण ॥३६॥ सयण संदेसा श्रापबो, सैगू माणस साथि । आणि नै ते मो भणी, आपै हाथो हाथि ॥३७॥ दोधक-छत्तीसी रची, सैणां हंदै काज । हेत प्रीत कागळ लिखी, सोकळिजो जसराज ॥३८॥ (श्री अगरचंद नाहटा रै संग्रह)
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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