SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ उपदेश छत्तीसी सौ बीज जोउ वावै सुकृत कमाई खोवें, सै ताके फल होवै वचन पतीज रे । प्रथम लहै है जाति भटकत द्यौस राति, श्रीतम वियोग जोग खल देख्यां खीजरे । दरिद वढै है गेह अपजस को न छेह, क्रूर जिनहरख कहूं तौ करि धीज रे ||३१|| अथ नवकार महिमा कथन सवइया ३१ सुख को करणहार दुख को हरणहार, मुगति कौ दैहार मध्य उर हार जू । भय को संजहार रि कौ गंजणहार, मन कौ रंजणहार नित अविकार जू । यौही नीको मंगलीक समरण निरभीक, महामंत्र तहतीक महिमा अपार जू । चवद पूरव सार जीव को परम आधार, जिनहरख समर नित प्रति नवकार जू ||३२|| अथ पुन नवकार महिमा कथन सवइया ३१ याकै समरण भयो नाग फीट धरणिंद, इंद पद लौ सब जात संसार जू । 7 संबल कंबल बैल aft निज मन मैल लही सुरगति सैल लह्यौ सव पार जू ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy