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________________ जिनहर्ष-ग्रन्थावली अथ प्राणातिपात कथन सवइया ३१ जीव जो मारै नर पातिक को सौउ घर, पर भव कौ न डरै महा जम राण जू । तनक भी दया नावै सुचि कबहु न पावै, ... डांण बाहै भैसै ज्यु कपोत कु सींचाण ज्यु । खायै तो उपर मंस तामै नही धर्म अंस, वंसन को जारिवै कु पावक प्रमाण जू। दुरगति वास वाळू सुगति न ठाम ताकू, दुख सहै कहै जिनहरख सुजाण जू ॥११॥ अथ मृषावाद कथन सवइया ३१ प्राणी मेरे कर जोर तो मैं करू निहोर, सृखावाद छोरि छोरि कोउ न सवाद रे । वचन सके न बोल निपट निटोल कीरति जै है अमोल अंग उदमाद रे। बदन की गंध दुरगंध सहीजै न बंध, अंध''कंध धंध ही मै मति छवि छाद रे । कहै जिनहरख न सांन सनमान अग्यान व है- जाथे ऐसो मृषावाद रे ॥१२॥ अथ अदत्तादान कथन सवइया ३१ लहै जो अदत्ता-ममता-मै रत्ता मत्ता रहे. तत्ता फिरै लोह ज्युदुचिता नांहि चैन ज्यु।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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