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________________ ६८ दोहा-बावनी फौज दिशौ दिश में लगी जसा धुरे नीसाण । - झूझै सन्मुख जायके सूर गणे नहीं प्राण ॥३६।। व परै सब दोरहै ले ले आयुध हाथ । बदन मलीन करै जसा जाचै कोई अनाथ ॥४०॥ भगत भली भगवंत की संगत भली सुसाधः । औरन की संगत जसा आपहर उपाध ॥४१॥ मूरख मरण न देखियत करत बहुत आरंभ । __सात विसन सेवै सदा करै धर्म विच दंभ ॥४२॥ . याग करै प्राणी हणे भाखै धर्म उलंठ। देखो ज्ञान विचार के क्यु पावै वैकुंठ ॥४३॥ , रीस त्याग वैराग धर हो योगी अवधृत । शिव नगरी पावै जसा कर ऐसी करतूत ॥४४॥ लहणा दैणा कुछ नहीं मुंह की मीठी वात । रिदय कपट धरै जसा ताके सिर पर लात ॥४॥ वरसै वारधि अहो निशि खाखर तीतो पान । भाग्य बिना पावै नहीं जाचक दाता दान ॥४६॥ संख सरीखा ऊजला नर फूटरा फरक । __ जसा न सोभै ज्ञान बिन ज्यु बुटी काम धरकः ।।४७॥ खरौ पंथ है सूर को रण विच मुड विहंड । पाछा पाव धरै नहीं जो होवे सतखंड ॥४८॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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