SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीशी अर सेवइ सुर नर कोड़। सोवन सिंघासण हीरे जड़ियउ वैसणै जी, अर झलकै होडा होड ।१।।.। समवशरण में हो बैठा जिनवर उपदिसै जी, अर धर्मना च्यारि प्रकार । - परपद वारइ हो देसण नीकी संभलइ जी, अर सुर बोलइ जयकार ।२।।अ. कुसम वरसावे हो साहिवा जी रा महल में जी, अर विकसित जानु प्रमाण । चमर विन्हे दिशि ढालइ उमा देवता जी, अर भामंडल ज्यु भाण ॥३॥ . . . वाजित्र वाजइ हो साहिबा जी रा अति भला जी, अर श्रवणे अधिक सुहाइ । प्रभु गुण गावइ हो अप्सर मीठा कंठ सुजी, अर चारू वेश वणाइ 18 . इन्द्र उतारइ हो साहिब जी री आरती जी, अर चंदण लेपइ गात । . . कंचण वरणी हो काया तेजइ झिग-मिगइ जी, अर वदन कमल विकसात ।। ।अ.। एहची निहालू हो नयणे रूडी साहिवी जी,
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy