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________________ जिनहर्ष - प्रन्थावली पर स्त्री पर सुख देखी भूर्यउ कि । वा । लेप सुरनउ जनमन पूर्यउ कि ||७|| पांचमां श्रीयसुजात सिवगामी कि । वा । भव भव तु हीज माहरउ सामी कि । वा । ४२ चउपट चिहुॅ गतिना दुख चूरउ कि । वा । प्रभुजी सुप जिनहरप नड़ पूरउ कि ||८|| -:: स्वयंप्रभ - जिन - स्तवन [ ढाल - होरे लाल सरवर पाले चीपलउ रे लाल, घोडला लपस्या जाइ ॥ ए देशी ॥ ] हो रे लाल छठा स्वयंप्रभु स्वामिजी रे लाल, विहरमाण जिनराय । हो रे लाल नाम तर नवनिधि संपजइ रे लाल, पातक दूरे पलाइ ॥ १ ॥ हो रे लाल भगति करड़ बहु भांतिस्यु रे लाल, चरणे नमः त्रिकाल । हो रे लाल ततपिणि ते नर नारीयां रे लाल । कापड़ करमनी जाल ॥ २ ॥ हो रे लाल जे वांद प्रभुन सदा रे लाल, देपइ जे दीदार |
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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