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________________ जिनहर्ष-ग्रन्थावली सुदर सोहइ रे रूप सुहामणउ रे, एवउ म्हारा आतम नउ आधार ॥ तई गन मोबउं रे श्री युगमंधरा रे, एतउ राणी प्रिय मंगला भरतार ॥१॥ प्रभुजी नी काया रे कंचण सारिपी रे एतउ झलकह तेज अपार । सास ऊसास कमलनी बासनारे, एतउ गुणनउ नहि कोई पार ॥२॥ मीठी वाणी रे योजन गामिनी रे, एतउ सुणतां उलसइ देह । निज निज भाषा रे सहको सांपलइरे, . सहुना टलइ संदेह ॥३॥ ते दिन कईयई रे थास्येइ साहिवा रे, ए तउ देखिसिहुँ दीदार । चरण कमलनी करिस्यु चाकरी रे, एतउ साथई ऋरिस्यु विहार ॥४॥ नयणे प्रभुजी ना सामु निहालिस्युरे, हुँ तउ नमिस्यु तेहना पाय । तेहनइ पासई रे किरिया सीपिस्युरे, एतट मिरमल करिस्यु काय !!५!!
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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