SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ ३२ जिनहर्ष-ग्रन्थावली -पार्श्वनाथ-गीतम् राग-ललित ___ मान तजी मेरे प्राणी वेर बेर कहुं वाणी । काहे मूढ भजनकु आलस करइ हइ । अउर कोऊ नावइ काम सगेस इंण दाम धाम, नाम एक प्रभुजी के काम सब सरइ हइ ॥१मा।। भवकु भंजणहार सुषकु देवणहार । ताकु हीयइ धारिजउ तुकरम सुडरई हइ । जपि जपि जगनाथ यउ तउ हइ मुगति साथ । जाकउ दरसण देषि अंपीयां ठरइ हइ ॥रमा।। अइसउ प्रभु कोई अउर देख्यु हइ अपर ठउर । ग्यान कु भंडार तजि काहे भूल उपरइ हइ । तेवीसमउ प्रभु पास पूरइ हइ सकल आस । कहइ जिनहरप जनम दुप हरइ हइ ॥३मा.।। महावीर-गीतम् राग-केदारउ मे जाण्यु नही भव दुप अइसउ रे होइ । मोह मगन माया मे घूतउ, निज भवहारे दोइ ॥१मः।। जनम मरण ग्रभवास असुचिमइ, रहिवनु सहिवनु सोइ । भूष त्रिपा परवश वध बंधन, टारि सके नही कोई ॥२म.॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy