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________________ जिन सिद्धान्त ] • १८५ श्रेणी वाले के तो १४२ की सत्ता है, किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि उपशम वाले के दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृति रहित १३६ प्रकृति की सत्ता रहती है । क्षपक श्रेणी वाले के सातवें गुणस्थान की व्युच्छिति श्रनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा दर्शन मोहनीय की तीन और एक देव आयु मिलकर आठ प्रकृति चयकर शेषं १३८ प्रकृतियों की सत्ता रहती है । प्रश्न - नौवें अर्थात् श्रनिवृचि गुणस्थानों में बंध कितनी प्रकृतियों का होता है ? उत्तर -- आठवें गुणस्थान में जो ५८ प्रकृतियों का बंध कंहा है, उसमें से व्युच्छित्ति निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्तविहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, तेजस शरीर, कार्माण शरीर, अहारक शरीर, अहारकं अंगोपांग, सम'चतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुंपूर्वी, उच्छ्वास, स, वांदर, रूप, रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, शुभंग, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय इन ३६ प्रकृतियों को घटाने पर शेष २२ प्रकृतियों का बंध होता है 1 F 1 D " • प्रश्न --- नौवें गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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