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________________ जिन सिद्धान्त ] उत्तर – संज्वलन और नोकपाय के मन्द उदय होने से प्रमाद रहित संयम भाव होता है इस कारण इस गुणस्थानवत सुनि को अप्रमत विरत कहते हैं । प्रश्न- श्रप्रमत्त गुणस्थान के कितने भेद हैं ? उत्तर - दो भेद हैं- १ स्वस्थान श्रप्रमत्त विरत. २ सातिशय अप्रमत्त विरत । १५० प्रश्न – स्वस्थान श्रप्रमत्तविरत किसे कहते हैं ? - उत्तर - जो असंख्यात बार छड़े से सातवें में और सातव से छड़ गुणस्थान में आवे जावे उसको स्वस्थान प्रमत्तकहते हैं ? प्रश्न - सातिशय श्रप्रमत्तविरत किसे कहते हैं ? उत्तर - जो श्रेणी चढ़ने के सन्मुख हो, उसे सातिशय अप्रमतविरत कहते हैं । प्रश्न - श्रेणी चढ़ने का पात्र कौन है ? उत्तर - क्षायिक सम्यग्दृष्टि और द्वितीयोपशम सम्यदृष्टि ही श्रेणी चढ़ते हैं। प्रथमोपशम सम्यक्त्व वाला तथा क्षयोपशमिक सम्यक्त्व चाला श्रेणी नहीं चढ़ सकता है । प्रथमोपशम सम्यक्व वाला प्रथमोपशम सम्यक्त्व को छोड़कर क्षयोपशमिक सम्यग्दृष्टि होकर, प्रथम ही अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माय, लोम का विसंयोजन करके दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों का उपशम करके
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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