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________________ जिन सिद्धान्त ] उत्तर - चौथे गुणस्थान में जो १०४ प्रकृतियों का उदय कहा है उनमें से प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवत्रायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरक आयु, वैक्रयिक शरीर, वैक्रयिक अंगोपांग, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तियंचगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, श्रनादेय, यशःकीर्ति, मिलकर १७ प्रकृतियों के घटाने पर ८७ प्रकृति रहीं उनका उदय रहता है । १७८ प्रश्न - पांचवे गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों की सत्ता रहती है ? उत्तर - चौथे गुणस्थान में १४८ प्रकृति की सत्ता कही है, उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति एक नरक आयु बिना १४७ की सत्ता रहती है परन्तु क्षायिक सम्यकदृष्टि की अपेक्षा से १४० प्रकृति की सत्ता रहती है। प्रश्न-छडे प्रमत्त विरत नामक गुणस्थान का क्या स्वरूप है ? उत्तर -- छट्ठे गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण कपाय के उपशम से सकल संयम की प्राप्ति हो जाती है परन्तु संज्वलन और नोकपाय के तीव्र उदय से संयम भाव में मल जनक प्रमाद उत्पन्न होते हैं । यह गुणस्थान भावलिंगी मुनि के होता है ।
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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