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________________ जिन सिद्धान्त ] १२८ 'कुसंगति छोड़ो यह वाक्य वाचक भाव होने का क्या कारण है १ यदी क्रमबद्ध ही पर्याय होती है तो प्रवचन का रिकार्ड क्या सोचकर किया जाता है । यदि रिकार्ड 'से जीवों को लाभ होता ही नहीं है तो व्यर्थ के संकटों में ज्ञानी पुरुष क्यों पडते हैं ? यद्यपि रिकार्ड लाभ करती नहीं है परन्तु रिकार्ड द्वारा अनेक जीव लाभ उठाकर अपनी क्रमबद्ध पर्याय का संक्रमण आदि कर लेते हैं । इससे सिद्ध हुआ कि आत्मा में क्रमबद्ध तथा अक्रम पर्याय होती हैं। शंका: -- यदि अक्रम पर्याय होती है तो सर्वज्ञ का ज्ञान मिथ्या हो जाता है । t समाधान:- सर्वेझ का स्वरूप का ज्ञान नहीं है इस कारण आपको शंका होती है । सर्वज्ञ के ज्ञान में पदार्थ झलकते हैं परन्तु भूतकाल तथा भविष्यकाल की पर्याय प्रकट रूप झलकती नहीं वल्कि शक्ति रूप झलकती है, जिससे वर्त्तमान पर्याय प्रकट संहित पदार्थ भूत भविष्य की पर्याय की शक्ति सहित झलकता है। इस कारण से सर्वज्ञ के ज्ञान में बाधा नहीं श्राती है । सर्वज्ञ के ज्ञान में भूत भविष्य का भेद नहीं है । सर्वज्ञ लोकालोक को १ • व्यवहार का जानता है यह कहना असद्भूत उपचरित कथन है, परन्तु निश्चय नय से सर्वज्ञ अपने स्वरूप का
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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