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________________ दिग्विजय के बाद शिला पर अपना नाम लिखने में भी 'परित का प्रयोग किया है। तथाहि 'स्वस्नीनुवाकुकुलव्योमनलपालेयदीधिति. । चातुरग्नमहीभर्ता भरत शातमातुर ॥" - मादिपुगण ३२१४५ तीर्थकरो के शरीर सवधी १० लक्षणो मे भी ग्बग्निक एक गुपित माना गया है-- इसमें सदेह नही कि मगल, मुख, गानि व कल्याण के लिए गारो मंगलों, चागे उत्तम, और चागे गण (पाठ) का आमग लिया जाना है। गृहस्थाचार मम्बन्धी कार्यों में जो यत्र पूजा-विधानादि में ग्यापित किए जाते हैं, उन यत्रो- - विनायक पत्र, गाग्निविधान पत्र, शानियत्र में 'बत्तारि. मंगलोत्तमशरण' पाठ लिखा होना है. इम मबमे यही मिलहोता किम्बग्निक इन्ही चागे का प्रतिनिधि होना चाहिए। प्रश्न होता है कि ग्निक का जो कप प्रचलित है उमकी मगलांतम गरण पाठ में मनि कमे बिठाई गई है। पर यह प्रश्न म्वग्निक की बनावट में महज ही हल हो जाता है। म्बग्निक बनाने वाले का भाव मगमोनमगरण की स्थापना का है और वह एक एक पद के लिए एक एक विधि पूरी करना जाता है। पर्याप मूल (आज) विग्मृत होने में वह ऐमा भाव नहीं बिठा पाना जो कि उमे बिठाना चाहिए। वास्तव में ग्वग्निक रचना के ममय जो भावमा गहनी चाहिए उमका रचनाक्रम इस प्रकार है. (म्मग्ण हे कि रचना बनाने ममय प्रनिपद उच्चारण के माथ ही चिह्न बनाना चाहिए) - चनाग्मिगन, चनारिलांगुनमाऔर चनारिणग्ण की नार मन्या के प्रतिनिधि चार कोण -
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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