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________________ अपवित्र पवित्रो व मुःस्थितो दुःस्थितोऽपि वा। . . प्यायेन् पचनमस्कार सर्वपापः प्रयुचते ॥ अपवित्र. पवित्रो वा सर्वाम्पाङ्गतोपिया। पम्मरेत परमात्मान स. बागायतर. पषिः । अपराजितमन्योन सर्वविघ्नविनाशनः । मगनेषु च मवेषु प्रथम मगन बतः ॥ एमो पवणमोपारो मम पापप्पणामणो। मगलाण व ममि, पढम हवा मवल । इसी क्रम में जब हम पूजन प्रारम्भ करते हैं. हमे 'मगनोत्तममरण पाठ का माहात्म्य और 'मगलोत्तमारण पाठ' के मूलभूत माहन, सिट, माधु गोर धर्म के विशेष गण पदने को मिलने । यथा - 'म्बग्नि' त्रिलोकगुरुये बिनपुगवाय, ग्बग्नि ग्वभावहिमोदयमुस्थिताय । म्वम्ति प्रकाशमहजोजित रमपाप, म्बग्नि प्रमन्नालनाभूतभवाय ॥ म्बम्यून बिमनबोधमुधाप्मनाय, बग्नि म्वभावपरभाविभासकाय । म्वनि क्लिोविन विद्गमाय, म्वम्नि त्रिकालगकलायतविम्तनाय ॥' इत्यादि। उक्त प्रमग में हमें यह म्मरण रखना चाहिए कि इन मभी लोकों में ग्रहीन पद 'म्यग्नि' ही है. जो हमे म्बनिक' नाम में मिलता है, क्योंकि यह पहले ही कहा जा चुका है, कि 'म्बम्नि एव म्बनिकम्' । ऊपर के पन में हमें देव (अरहन-सिड) और धर्म (बांध) को स्पष्ट मानक मिल रही है और इनको मगन कहा गया है , नया 'म्बग्नि' और बम्निक दोनों का अर्ष मंगल है। मागे बन कर इमी पूजा प्रमग मे हम माधुओं को 'म्वनिपता' उनकी ऋद्धियों के वर्णन में पढ़ते हैं। अगहन रूप में नीर्षकगं की 'म्बग्नि-पना पढ़ने को मिलनी है। बरहंन और माधुओं के लिए निम्न म्वनि' विधान है-बहन म्पति श्री वृपभो न. म्वम्ति, स्वस्ति श्री गितः । श्री मभव: स्वनि,म्बम्ति थी अभिनंदनः ।। इत्यादि।
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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