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________________ मारना का अर्तस्व दृष्टि से प्रदेशी मान लेने की बात ही नही ठहरनी। क्योकि "अनेकांतवाद" छद्मस्थों को पदार्थ के सत्स्वरूप मे उसके अश को जानने की कुंजी है, गौण किए गए अशो को नष्ट करने या द्रव्य के स्वाभाविक पूर्ण रूप को जानने की कुंजी नही । यदि हम दृष्टि मे वस्तु का सर्वधा एक अश-रूप ही मान्य होगा तो "अनेकान्त सिद्धान्त" का व्यापान होगा । यदि आत्मा मे अमख्य प्रवेशित्व या अप्रदेशिय की सिद्धि करनी हो तो हमें जीव की उक्त शक्ति को लक्ष्य कर 'प्रदेश के मूल लक्षण को देखना पडेगा । उसके आधार पर ही यह संभव होगा। अन यहां सिद्धान्त ग्रन्थों से "प्रवेश" के लक्षण उद्धृत किए जा रहे है १. "म (परमाणु) यावनिक्षेत्रे व्यवतिष्ठनं स प्रदेश ।" - परमाणु (पुद्गल का मवसूक्ष्म भाग जिसका पुन न हो मके) जितने क्षेत्र (आकाश) मे रहना है, उस क्षेत्र को प्रदेश कहते है । २. " प्रदेशांनामापेक्षिक सर्वसूक्ष्मस्तु परमाणोग्वनाह ।' त० भा० ५-ध -- प्रदेश नाम आपेक्षिक है वह मर्वसूक्ष्म परमाणु का अवगाह (क्षेत्र) है। ?. तौह आकाणादीना क्षेत्रादिविभाग प्रदिश्यते ।" 12 न० वा० २, ३६, प्रदेशों के द्वारा आकाणादि (मां के) क्षेत्र आदि का विभाग इगित किया जाना है । ८. जावदिय आयाम अविभागीयुग्गलाणुवट्ट । नम्बु पम जाणे मव्वाणु ठाणदा ॥" · जितना आकाण (भाग) अविभागी पुद्गल अण पंन्ना है, उम आकाश भाग को प्रदेश कहा जाता है। कहलाता है । ५. "जेलियमेन मेन अणुणाद्व "" द्रव्यम्य० नयच० १८० - अणु जिनने ( आकाण) क्षेत्र को व्याप्त करना है उतना क्षेत्र प्रदेश जाता है । ६. "परमाणुष्याप्नक्षेत्र प्रदेश " - प्र० मा० जयचंद वृ० - परमाणु जितने क्षेत्र को व्याप्न करना है, उतना क्षेत्र प्रदेश कहा ७. "शुद्धपुद्गलपरमाणुगृहीतनभम्यनमेव प्रदेशः ।" शुद्ध पुद्गल परमाणु मे व्याप्त नभम्बल ही प्रदेश कहलाता है । ८. "निविभाग आकामावयव. प्रदेश ।" - निविभाग आकाशाव' प्रदेश होता है ।
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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