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________________ मात्मा का प्रसंख्यात प्रदेशित्व एकबार आचार्य कुन्दकुन्द के ममय मार को १५वी गाथा मे गृहीत 'अपदेम' गम्द के अर्थ को लेकर चर्चा उठ नही हुई और हम मन्द को आत्मा का विपण मानकर इसका अर्थ अप्रदेश यानी आत्मा अप्रदेणी है ऐसा भी किया जाने लगा। जो मर्वथा- मभी नयां में भी किमी भाति उचित नही था। आत्मा तो मबंधा अमन्यात प्रदेणी ही है। चाहे हम गाथा में मधित अर्थ में हो या पृथक अब कप में । नाहि . विदि केवलणाण कंवलमांवन्न च कवविग्यि । ___ कंवििट्ठ अमुन, अन्थिन मप्पदमन ।। __-ममयमार १८१ मप्रदेणवादि म्वभावगुणा भन्नि इनि' टीका।। मिव भगवान के केवलज्ञान, केवलमुखा, कंबलवीय, कंवलदर्णन, अमूनिकपना, अम्मित्वभाव नथा मप्रदेणोयना अर्थात् अमख्यान प्रदेणोपना है। ये सभी म्वाभाविक गुण होते है जो पृथक नही हो मकन है । __ . आत्मा को गणना अस्तिकायो में है और अम्निकाय में एक में अधिक प्रदेश माने गए है। काल द्रव्य जो अग्निकाय नहीं है उस भी किमी अपेला, कम से कम एक प्रदशी नो माना हो गया है। - अमव्यंया प्रदेशा धर्माधर्म कजीवानाम् । आकाशम्याग्नता । मख्ययासख्ययाश्च पुद्गलानाम् ॥ -तन्वायं मूत्र ५ । प्रवचनमार में आचार्य कुन्दकुन्द ने शुद्ध जीव का अम्निकाय और मप्रदेशो कहा है। गाथा ! .. की टीका में जयमनाचार्य स्पष्ट करने है'पण अप्रदेश कालाणुपग्माग्वादि मपदेम गुडजीवाग्निकायादि पचाम्निकायम्बम्पम् ।' -अर्थात् कालाणु परमाणु आदि अप्रदेश है, सुखजीवास्तिकायादि मप्रदेश है। 1. आत्मा को अप्रदेणी मानने पर उमका अस्तित्व ही नही रह मकंगा -यह शून्य-सविषाणवन् व्हरेगा-उत्पाद-व्यव-प्रीव्य का अभाव होने से श्री सत्ता का सर्वथा अभाव होगा । कहा भी है
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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