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________________ २० मिन-मासन विचारणीय प्रसंग पर कोई ऐमा अन्य मन्द रहा होगा जो ?वी गाथा में गृहीत मात्मा के सभी (पांचो) विशेषगों की मंच्या पूर्ति करता हो। वह मन्द क्या हो सकता है ? क्या 'संत' 'मन' या 'मन' मा कोई अन्य शब्द भी हो सकता है ? यह विचाग्णीय है। हमारे ममम वी व १५वी दोनों गापायें और दोनों पर श्री अमनचनालार्य की टीकायें उपस्थित हैगाचा १४-'जो पम्मदि अप्पाणं अबळपुळं मणमणियदं । अविममममवृत्त..................॥१॥ ममयमार रीका--'या मालु अबसम्पृष्टम्यानन्यम्य नियतम्यावि पम्यामंयुक्तम्य चात्मनोनुभनि:............ मात्वनुभूनिगमव ।'गाचा १५- 'जो पम्मदि अप्पाणं अबढपुढें अणणमविमेनं । अपदेममनमन.............."१५॥ ममयमार । टीका-येयमबम्पृष्टम्यानन्यम्य नियनम्याविषम्या मंयुक्नम्य पात्मनोनुभूनिः..........."जिन मामनस्यानुभूनि ।' उक्त दोनों गाषायें और उनकी टीकायें आत्मानुभूति व जिनशामन अनुनि (होना) में अभेदपन दर्शाती है अर्थात् जो आत्मानुभूति है वही जिनशासन अनुभूति है और जो जिनशासन की अनुभूति है वही आत्मानुभूति है। प्रथम गाथा नम्बर १४ में आत्मा के पांच विशेषण है-(१) मबर. म्पृष्ट (२) अनन्य (B) नियन (6) अविशेष और (५) अमंयुक्त । दोनों गाथाओं की टीका के अनुसार ये पाचो हो विशेषण गाथा (मूल) १५ में भी बैठने चाहिए । म्यून दृष्टि में देखने पर गापा १५ में अबडम्पृष्ट, अनन्य और अविशेष येनीन विशेषण म्पष्ट समझ में आ जाते है तथा नियन' और 'असंयुक्त' दो विशेषण दृष्टि से आमल रहते है जबकि टीका में पांचो विशेषगों का उल्लेख है । पाठकों को ये ऐमी पहेली बन गए है जैमी पत्रिकाओं में प्रायः चित्रों के माध्यम मे पहेलियां प्रकाशित होती रहती है। जैसे—यहां इस चित्र में दो पुरुष, एक कुत्ता, एक चिड़िया छिपे है उन्हें इंडो। उनके एंड़ने में जैसे दृष्टि और बुद्धि का व्यायाम होता है और ये तब कही मिल पाते हैं । इमी प्रकार गापा के तृतीय परण में ऐमा बीर ऐने से भी अधिक व्यायाम किया जाय तब कही विशेषनो का भाव बुद्धि में फलित हो । पाठक विचारें कि कही ऐसा तो नहीं है ?
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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