SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 考病 जिनान के कुछ विवादकीय प्रसंग महमेव' की बात भी रह जाती है। साथ ही पर्व की तिथियां (पंचमी, अष्टमी चतुर्दशी) भी अष्टाङ्किका में समाविष्ट रह जाती हैं जो कि प्रोषध के लिए अनिवार्य हैं । एक बात और स्मरण रखनी चाहिए कि जैनों में पर्व सम्बन्धी तिथि काल का निश्चय सूर्योदय काल से ही करना आगम सम्मन है । जो लोग इनके विपरीत अन्य कोई प्रक्रिया अपनाते हों उन्हें भी आगम के वाक्यों पर ध्यान देना चाहिए अण्णाउ || १ || 'बाउम्मान अवरिमे, पवित्र अ पंचमीट्ठमीसु नायव्वा । नाओ निहीजी जार्मि, उदेद्द सूरो न पूआ पच्चक्खाणं पडिकमणं तइय निअम जीए उदंह मूगे नीइ निहीए उ गहणं च । कायव्वं ॥२॥ ' धर्म सं० पृ० २३६ वर्ष के चतुर्मान में चतुर्दशी पंचमी और अष्टमी को उन्ही दिनों में जानना चाहिए जिनमे सूर्योदय हो, अन्यप्रकार नहीं । पूजा प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण और नियम निर्धारण उनी निधि में करना चाहिए जिसमें सूर्योदय हो । 00
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy