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________________ पाके पंचमहाय ?E इम सम्बन्ध में पाठको के विचारार्थ अधिक कुछ न लिखकर यहा एक उद्धरण मात्र दिया जाना ही उपयुक्त है 'भगवान् पार्श्वनाथ के चौथे पट्वर आचार्य केशी भ्रमण हुए जो बड़े ही प्रतिभाजाली, बालब्रह्मचारी, चौदह पूर्वधारी और मति भुत एव अवधिज्ञान के धारक थे । पार्श्व सवत् १६६ से २५० तक आपका कार्यकाल बताया गया है । आपने ही अपने उपदेश से श्वेताम्बिका के महाराज 'प्रदेशी' को घोर नास्तिक में परम आस्तिक बनाया आचार्य कुशिकुमार पार्श्वनिर्वाण सवत् ११६ मे २५० तक अर्थात् ८४ वर्ष तक आचार्य पद पर रहे और अन्त मे ... मुक्त हुए।' इम प्रकार भगवान् पार्श्वनाथ के चार पट्टधर भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण बाद के २५० वर्षों मे मुक्त हुए । इस गम्बन्ध मे वाग्नविक स्थिति यह है कि प्रदेशी राजा को प्रतिबोध देने वाले केशी और गोनम गणधर के साथ मवाद करने वाले केशीकुमार श्रमण एक न होकर अलग-अलग समय मे दो केशि भ्रमण हुए है ।' 'आचार्य केशी जो कि भगवान पार्श्वनाथ के चौथे पट्टधर और प्रदेशी के प्रतिबोधक माने गए है उनका काल 'उपकणगच्छ पट्टावली' के अनुमार पार्श्वनिर्वाण सवत् १६६ मे २५० तक का है। यह काल भगवान महावीर की छद्मन्यावस्था तक का ही हो सकता है। इसके विपरीत श्रावस्ती नगरी मे दूसरे केशीकुमार श्रमण और गौतम गणधर का मम्मिलन भगवान महावीर के केवणीचर्या के १५ वर्ष बीत जाने के पश्चात् होता है। इस प्रकार प्रथम केशी श्रमण का काल महावीर के उद्यम्थकाल तक का ठहरना है।' 'इसके अतिरिक्त गयपमेणी सूत्र मे प्रवेशी प्रतिबोधकः केशिभ्रमण को "चार ज्ञान का धारक” बनाया गया है। केणि मे स्वयं कहा है- 'मैं मनि श्रुन अवधि और मन:पर्ययज्ञान मे सम्पन्न है।' - राज प्र० १६०-१६५; जैन · माहि० इति० भा० २ पृ० ५७-५८ । तथा जिन केशि श्रमण का गौतम गणधर के माथ श्रावस्ती में मवाद हुआ, उनको उत्तराध्ययन सूत्र मे तीन ज्ञान का धारक बताया गया है [केशीकुमार समणे, विज्जाचरणपारगे ओहिनाणमु उत्तरा, अ० २३ ] । ऐसी दशा में प्रवेशी प्रतिबोधक चार ज्ञानधारक केणी श्रमण जी महाबीर के उग्रन्थ काल मे ही हो सकते है, उनका महावीर के केवलीचर्या के १५ वर्ष बाद तीन ज्ञान के धारक रूप मे गौतम के माथ मिलना किसी तरह युक्तिसंगत और संभव प्रतीत नही होता ।' - जैनधर्म का मौलिक इतिहास आ० हम्नीमल जी महाराज । पृ० ३२८-३१ ।
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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