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________________ उल्लेन ढूंढना चाहिए। शायद कही कुगीन को परिबह में समिनिन कर दिया हो? ८-मंत्रायें चार के म्यान में कही नीन बनाई है क्या ? पन मैथुन परिणा में अन्तत हो जाएगा। E-महावीर ने दीक्षा के ममय चानर्याम धारण किए या गमावन ? यदि पचमहावन धारण किए नोवे नोकगे की परमग में केमे मान। जाएगे? पदि चातुर्याम मदीन हा नो आदि नोकर की धर्म परम्पग में कैमे माने जायेंगे। १०- क्या कही १० धर्मों के स्थान पर. ब्रह्मचर्य को प्रक्रियाय में गभित किया गया है और धर्मों की मम्या । बतलाई गई। ११--'स्त्री को परिग्रह में गिनाया गया है या नही? यदि गिनाया गया है. मी मन्या के परिमाण की दृष्टि में अथवा भांग की दृष्टि में दमी प्रकार के अन्य भी बहन में प्रश्न उपग्थिन हो गायेंगे। ऐसे प्रश्नों के निगकरण के अभाव में ममग्न आगम ही गावरण (महाप)ह जायंगे। अन दि० विहाना में मंग निवेदन है कि वे विचार करें। भगति में नीमा है कि मभी नीर्थकग के उपदंण ममान रहे है। कही किचिन भी अन्ना नहीं आया है। जो भी अन्ना दृष्टिगोचर होता है, वह मब आचार्यो की देन है जा उन्होंने ममय-समय पर लोगों की दृष्टि में किया है। यदि हम ध्वनाम्बर परपगओं के उल्लयों पर विचार करे ना हमे बहा में उल्लेख भी मिलन है जिनमें यह मिड होना है कि पावं में पूर्व भी पचमहावना का चलन रहना रहा है। प्राचार्य हेमचन्द जी पावनाथ नाग दिा उपदेश को जिम भानि बतलाने है उनमें ब्रह्मचर्य को अपग्रह में गभिन नही माना जा सकता । अर्थात् पाश्वनाथ दाग ब्रह्मवर्य और अपरिग्रह को एक किया गया हो, गंमा सिद्ध नहीं पाता । यथा द्विधा मर्व वर्गत दवनभदन । संपमावि विधी, अनगागणा म नादिम ॥' (त्रि. ग० पु. १० पर्व , मर्ग ३) यह पावनाप का उपदेण है। इसमें मुनिधर्म, संबम बादिकम्प में दश प्रकार का बनलाया है। ब्रह्मचर्य का अन्तर्भाव अपरिग्रह में नहीं किया गया। १. क्षेत्र बस्नु धन धान्य, द्विपद च चतुणादम् । बालाना गोहिप मणिमुकादीना चतनाचतनानाम् ।'
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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