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________________ बमारि मनोज । 'लेखन मेबो नाम सूत्र नपुंमकना प्राकृतत्वाम्लिपि-विधानं तम्ब जिनेन भगवना ऋषभस्वामिना गाम्या रमिल करेग प्रतिमनाब नदादिन आरभ्य वाच्यते ॥' -अभि० गति पृ० ११२६ लिपिः पुग्नकादो अक्षरविन्याम मा अप्टादशप्रकागपि श्रीमन्नाभयजिनेन स्वमुनाया नाही नामिकापारशिता, ननो राशीनाम भिधीयनं ।' __ . . अभि. ग. गरम पृ. १२६४ 'अष्टादलिपि वाहण्या अपसव्येन पानिना।' 4. • T० व. २०६३ उक्न नथ्यो म पष्ट है कि ब्राह्मी लिपि का प्रादुर्भाव नीपंकर ऋषभदेव मे हा जो उन्होंने अपनी पुत्री पाली के माध्यम में ममार में किया फिर ऋषभदेव युग की आदि में हुए उन्हें भी अनादि नही माना जा सकता । एतावता यह टिप्पण भी मत्र के अनादिव की दिशा में निमन बैठना है कि. बाह्मी का अर्थ ऋपभदेव किया जाय । क्योकि मत्र के अनादिन्य में ऋषभ अर्थ का विधान भी (ऋषभ के मान्यि के कारण) वज्यं है। यदि मत्र अनादि है नो उममें ऋषभ (यक्ति) को नमस्कार नहीं, और यदि ऋषभ को नमस्कार है तो मंत्र अनादि नही। अत निष्कर्ष निकालना है कि मूनमत्र-गरमप्टी नमस्कागत्मक म्प है और वही अनादि है जमा कि बल्ग गम तथा अन्य मागनों में कहा गया है णमो अग्निाण, णमो मिदाण णमा आर्याग्याण, णमो उपनायाण, णमा लोग मव्वामाहणं ।' पाडागम मगलाचरणम् 'धवला' में पचय मष्ठिया का म्वरूप इस भानि वर्णन किया गया है . (१) मरिहंत (अरहन)-- जिन्होंने नरक नियंच, कुमानुप और प्रेन इन पर्यायों में निवास करने में होने वाले ममम्न दुखां के मूल कारण मांट और नदाधीन मानावग्ण, दर्णनावरण और अन्नगय चार कमंडपी गओ कर्मरूपी रज को नष्ट किया है वे अग्हिन होते है। देव अमुर और मनुष्यों के हाग सानिणय पूज्य होने में इन्हें महंन् भी कहा जाता है । और भी 'णिइट-मोह-तरुणी विन्धिण्णाणाण-मायतिष्णा। णिहय-णिय-विग्ध-बग्गा, बह-वाह-विणिग्गया अयला ॥२॥ दनिय-मयण-प्पयावा निकाल-विमाहि नीहि गयणहि । दिट्ठ-मयनमाग, मुदद-निजग मुणि-व्वदणी ॥२०॥
SR No.010380
Book TitleJina Shasan ke Kuch Vicharniya Prasang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadamchand Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1982
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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