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________________ पृष्ठ पदसख्या पृष्ठ पदसंख्या ३ काल अचानक ही ले० ५. ६ करम देत दुख जोर हो० १३.३० छवि जिनराई रानै छै ७३. १३ कंचनदुति व्यंजन लच्छ० २८० ३४ छिन न विसारां चितसौ० ८६ ३५ कीपर करौ जी गुमान० ८ ज ३७ कर ले हो जीव सुकृत० ९२./ १० जगतमैं होनहार सो होवै २१ ४५ कुमतीको कारज कूडौ० ११२०, २६ जिनवानीके सुनेसौं मि० ६३. ५१ कोई भोगको न चाहो० १२५/ ५४ जगतपति तुम हौ श्रीजि० १३० ६८ कृपा तिहारी विन जिन० १६३ | ५७ जिनवानी प्यारी लागै छै० १३६ ७२ क्यों रे मन तिरपत है. १७२ / ७० जिनगुन गाना मेरे मन० १६८ ७८ कहा जी कियौ भव० १८७ ७३ जो मोहि मुनिको मिलावै. १७६ ८१ करदा कुपेंच मेरै है. १९६ | ८६ जमारा नी वे तेरा नाहक. २०७ ८९ करि करि कर्म इलाज० २१५ | ८८ जीवा जी थाने किण वि० २१४ | ९९ जियरा रे तू तो भोग० २३९ ७ गुरुदयाल तेरा दुख लखि० १६. ३८ गुरुने पिलाया जी ज्ञान. __९४. ९८ ठाईसौं गुनाको धारी० २३७ ५९ गाफिल हवा क्या तू० १४१ | ८६ गाता ध्याता तारसी जी० २०९ ८ तू काई चालै लाग्यौ रे० १८. ८९ गहो नी धर्म नित आयु० २१६ १७ तन देख्या अथिर घिना० ३७ १७ तेरो करि लै काज वखत० ३८ ६ चन्दजिनेसुर नाथ हमारा १२. १८ तनके मवासी हो अया० ४१. १० चेतन खेल सुमति सग० २३./ १९ तारो क्यों न तारो जी ४५ २४ चुप रे मूढ अजान हम० ५७०/ २२ तोकौं सुख नहिं होगा लो० ५२ ३५ चदाप्रभु देव देख्या दुख० ८९. २४ त्रिभुवननाथ हमारो ५८ ५२ चन्दजिन विलोकवेत फंद० १२६ / २५ तेरी बुद्धि कहानी सुनि० ६० ६. चन्द जिननाथ हमारा० १४४ २५ तू मेरा कया मान रे० ६१ ६८ चेतन मो मातौ भव व. १६४ | २९ तें क्या किया नादान तैं तो ७१ ७५ चेतन तोसौं आज होरी० १८०४२ तेरो गुन गावत हूं मैं. १०४ ८३ चेतन आयु थोरी रे० २०२६२ तुम विन जगमैं कौन. १४८ '००चरनन चिन्ह चितारि. २४२ ६४ तूही तूही याद आवै ज० १५४
SR No.010379
Book TitleJainpad Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1910
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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