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________________ २ तत्वार्थ वालवोधनी टीकाभाषापूजासंग्रहजैनसिद्धान्तदर्पण - पं० गोपालदासजीकृत सुशीला उपन्यास - बहुत ही सुन्दर संशयतिमिरप्रदीप - पं० उदयलालजीकृत ... .... .... 4330 .... .... .... 2000 ...d 4040 .... 4000 .... 0.00 .... e 11=) बुधजन सतसई । कविवर वुधजनजीके बनाये हुए ७०० दोहे | नीति, उपदेश, वैराग्य, और सुभाषित विषयोंके प्रत्येक पुरुष स्त्रीके कंठ करने लायक सात सौ दोहे इस पुस्तकमें है । कविता बहुत ही अच्छी है, बहुतही शुद्धतासे छपाई गई है । कठिन २ शब्दोंपर जगह जगह टिप्पणीमें अर्थ लिख दिया है । सब लोग खरीद सकें इसलिये मूल्य बहुत ही थोड़ा अर्थात् केवल ) तीन आना रक्खा है । एक एक प्रति सबको मंगा लेना चाहिये । שון १1 नोट - इनके सिवाय हमारे यहा सबं जगहके सब प्रकारके छपे हुए जैनग्रन्थ मिलते हैं । चिट्ठीपत्री इस ठिकानेसे लिखिये - श्रीजैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय हीराबाग पो० गिरगांव - बम्बई | '
SR No.010379
Book TitleJainpad Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1910
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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