SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पदसंग्रहशीलवंत नर नारि, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥३॥ विषधर-बाघ न भय करै, सुनि प्रानी रे ! विनसैं विधन अनेक,,सीख सुनि पानी रे! व्याधि विषम-वितर भलै, सुनि प्रानी रे! विपत न व्या एक, सीख सुनि प्रानी रे! ॥४॥ कपिको शिखरसमेदपै, सुनि प्रानी रे! मंत्र दियो मुनिराज, सीख सुनि प्रानी रे! होय अमर नर शिव वस्यो, सुनि प्रानी रे! धरि चौथी परजाय, साख सुनि पानी रे ! ॥ ५॥ कह्यो पदमरुचि सेठने, सुनि पानी रे! सुन्यो बैलके जीव, सीख सुनि पानी रे! नर सुरके सुख भुंजकै, सुनि प्रानी रे ! भयो राव सुग्रीव, सीख सुनि प्रानी रे! ॥६॥ दीनों मंत्र सुलोचना, सुनि पानी रे! विंध्यश्रीको जोइ, सीख सुनि पानी रे ! गंगादेवी अवतरी, सुनि प्रानी रे! सर्प-डसी थी सोड. सीख सति पानी रे!॥७॥ चारुदत्तपै वनिकने, सुनि प्रानी रे! पायो कूपमँझार, सीख सुनि पानी रे ! पर्वत ऊ. पर छोगने, सुनि प्रानी रे! भये जुगम सुर सार, १ बकरने।
SR No.010377
Book TitleJainpad Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy