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________________ १६ जेन पदसंग्रह - नेमि विना० ॥ २ ॥ भूधर के प्रभु नेमि पिया विन, शीतल होय न राजुल हियरा ॥ नेमि विना० ॥ ३ ॥ २२. राग ख्याल । मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे ॥ टेक ॥ कीमिनि तन कांतार जहां है, कुच परवत दुखदाय रे ॥ मन मूरख० ॥ १ ॥ काम किरात बसै तिह थानक, सरवस लेत छिनाय रे । खाय खता कीचकसे बैठे, अरु रावनसे राय रे || मन मूरख० ॥ २ ॥ और अनेक लुटे इस पैंड़े ", वर कौन बढ़ाय रे । वरजत हों वरज्यौ रह भाई, जानि दगा मति खाय रे || मन मूरख - || ३ || सुगुरु दयाल दया करि भूधर, सीख कहत समझाय रे । आगे जो भावै करि सोई, दीनी बात जताय रे || मन मूरख० ॥ ४ ॥ २३. राग बिलावल | सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीराँ ॥ टेक ॥ सुख चाहै संसारमैं, यों होय न नीरा ॥ - १ वन । २ भील । ३ स्थानमें । ४ धोखा । ५ रास्ते । ६ जल्दबाज ७ ठडा-सुस्त | •
SR No.010377
Book TitleJainpad Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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