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________________ जेन पदसंग्रह १०. वे कोई अजब तमासा, देख्या वीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेकासा ॥ टेक ॥ एकौंके घर मंगल गावें, पूगी मनकी आसा । एक वि. योग भरे बहु रोवें, भरि भरि नैन निरासा ॥ वे कोई० ॥१॥ तेज तुरंगनिपै चढ़ि चलते, पहिरै मलमल खासा । रंक भये नागे अति डोलें, ना कोइ देय दिलासा ।। वे कोई०॥२॥ तरक राज तखतपर बैठा, था खुशवक्त खुलासा । ठीक दुपहरी मुद्दत आई, जंगल कीना वासा ॥ वे कोई ॥३॥ तन धन अथिर निहायत जगमें, पानीमाहिं पतासा । भूधर इनका गरव करें जे, फिट तिनका जनमासा ॥ वे कोई ॥४॥ ११. राग ख्याल । जगमें जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि ॥टेक॥ जनम ताड़ तरुतें पड़े, फल संसारी जीव । मौत महीमैं आय हैं, और न ठौर सदीव ॥.जगमें० १ पूरी हुई । २ धीरज । ३ सबेरे । ४ सिहासन । ५ सर्वथा । धिक् । ७ मनुष्यजन्म ।
SR No.010377
Book TitleJainpad Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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