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________________ धर्मात्मा पाठका इस कृत्यमें पुस्तकादिसे सहायता देकर हमारे उत्साहको बढ़ावेंगे, जिससे हम इस कठिन कार्यको सहज कर सके। - छहढाला दौलतरामजीका एक खतंत्र ग्रन्थ है, वह पदोंमें संम्मिलित नहीं हो सकता । इसलिये इस संस्करणमें हमने उसको संग्रह नहीं किया है।इसके सिवाय नंबर ३२ 'नाथ मोहि तारत क्यों ना? क्या तकसीर हमारी, नाथ मोहि०'यह पद भी निकाल दिया है।क्योंकि यथार्थमें यह एक दूसरे कविका है।किसी कृपानाथने पुस्तकके लोभसे दौलतकी छाप डालकर हमारे पास भेज दिया था । इस संग्रहमें दो चार पद भी हमको इसीप्रकारके जान पड़ते हैं, परन्तु कोई दृढ़ प्रमाण मिले विना उन्हें पृथक् करनेको जी नहीं चाहता हैं। यदि कोई महाशय ऐसे पदोंकी सूचना हमको देवेंगे, तो बड़ा. उपकार होगा । आगामी संस्करणमें वे पद अवश्य हटा दिये जायेंगे। प्रथमसंस्करण छप चुकनेपर कई महाशयोंने दौलतरामजीके और भी भजन हमारे पास भेजनेकी कृपा की हैं, परन्तु उनमें अधिकांश सज्जन ऐसे ही निकले, जिन्होंने या तो द्यानतकी जगह दौलत करके अथवा आंचलीमें कुछ उलट पुलट करके भेजी है। शेष जों पद नवीन प्राप्त हुए हैं, उन्हें हमने अन्तमें लगा दिये हैं । ___ अवके संस्करणमें हमने टिप्पणी अधिक लगवाई है । इससे पदोंके गूढंशब्द वाक्य तथा भाव समझनेमें बहुत सुभीता होगा। दौलतरामजीके पद ऐसे गंभीर और कठिन हैं कि, पाठकोंको समझानेके लिये इच्छा न रहते. भी हमको टिप्पणी लगाना पड़ी। जिस शब्दकी एक वार टिप्पणी की जा चुकी है, दूसरीवार आनेपर उसकी टिप्पणी नहीं दी है । पहले संस्करणकी अपेक्षा इसवार विशेष परिश्रमसे इस ग्रन्थकी शुद्धता की गई है । इतने पर भी दृष्टिदोषसे कुछ अशुद्धि रह गई हो, तो पाठकगण क्षमा करें और सुधारके पढ़ें। ताः १०-१-०७ ई० 1 पन्नालाल वाकलीवाल ।
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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