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________________ पृष्ट पदसंख्या पृष्ट पदसंख्या ८८ भज रे भज रे मन आदि०१६३ १९ माई आज आनंद है या ३५ १३३ भज जम्बूखामी अन्तर० २८१) ५६ मानुप जनम सफल भयो १०८ १३३ भजरे मन वाप्रभुपारस०२८२/ ७७ मानुपभव पानी दियो १५० १३४ भजो जी भजो जिनचरन० २८३/१०३ मानों मानों जी चेतन १८८ १४६ भली भई यह होरी आई ३१३/ ७३ मिथ्या यह संसार है १४३ ९ भाई अव में ऐसा जाना १६/ १२० मूरतिपर वारी रे नेमि० २४१ १९ भाई आज आनन्द कछु. ३४) १७ मेरी वेर कहा ढील करी ३२ ४२ भाई शानी सोई कहिये ८१, ३७ मोहि तारो हो देवाधिदेव ७० ४३ भाई कीन धरम हम पाले ८२ ५७ मेरे मन कय है है वैराग ११० ४८ माई आपन पाप कमाये ९२ १३१ मेरी मेरी करत जनम २७४ ५० भाई ज्ञानका राह दुहे. ९६ १३ मैं नेमिजीका पन्दा २४ ५१ भाई ज्ञानका राह मुहेला रे ९७, १४ में निज आतम कब ध्या० २५ ८१ भाई ज्ञान विना दुख पाया१५५/ ६४ मैं एक शुद्धज्ञाता १२४ ८२ भाई कहा देख गरवाना १५६/१०२ मैं नूं भाव जी प्रभु चेत० १८५ ८३ भाई जानो पुद्गल न्यारा १५८ | १०३ में वन्दा स्वामी तेरा १८६ ८५ भाई ब्रह्माज्ञान नहिं जाना १६० १४० में न जान्यो री जीव ३०१ ९३ भाई ब्रह्मा विराजे कैसा ? १७० ४ मोहि कर ऐसा दिन आय ६ ९४ भाई कीन कहं घर मेरा १७१/१२२ मोहि तारि लै पारस० २४५ ११५ भाई धनि मुनि ध्यान ल० २२६/ १२३ मोहि तारो जिन साहि. २४९ १५४ भाई काया तेरी दुखकी० ३२२/ १५४ मंगल आरती कीजे भोर ३२३ ६. भैया सो आतम जानो रे १२० ४० भोर भयो भज श्रीजि० ७७१३१ यारी कीजे साधो नाल २७५ १३२ भोर उठ तेरो मुख देखों २७७/११. ये दिन आछे लहे जी २१० १० मन मेरे रागभाव निवार १८, ७४ राम भरतसों कह सुभाइ १४६ ३५ मगन रहु रे शुद्धातममें ६५/ ३६ री मेरे घट ज्ञानधनागम ६८ ११७ महावीर जावजीव २३३) ५७ री चल यदिये चल वैदि० १०९ १९ माई आज आनंद कछु कहे०३४१ १२० रीमा नेमि गये किंह टा. २३९
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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