SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ - जैनपदसंग्रहः ३०. राग सोरठ। "चित ! चेतनकी यह विरियाँ रे ॥ टेक ॥ उत्तम जनम सुतन तरुनापौसुकृत बेल फल: फरियाँ रे ॥ चितः॥१॥लहि सत संगतिसौं सब समझी, करनी खोटी खरियाँ रे । सुहित सँभालि शिथिलता तजिकै, जाहैं बेलीझरियाँरे।। चित०॥२॥ दल बल चहल महल रूपेका, अर कंचनकी कलियाँ रे । ऐसी विभव बढ़ी कै बढ़ि है, तेरी गरज क्या सरियाँ रे॥ चित०॥३॥ खोय न वीर विषय खल सै,ि ये कोरनकी घरियाँ रे । तोरि न तनक तंगाहित भूधर, मु. कताफलकी लरिया रे ॥ चित० ॥४॥.... ...... ३१. राग पंचम। : . '. आज गिरिराजके शिखर सुंदर सखी, होत है अतुल कौतुक महा मनहरन ।। टेक ॥ नाभिके नंदकौं जगतके चन्दकौं, ले गये इन्द्र मिलि जन्ममंगल करन।आज०॥शा हाथ हाथन धरे सुरन . १ जवानी. २ पुण्य. ३ बदलेमें. ४ करोड़ोंकी. ५ धागा, डोराके लिये, ६ लड़ी. . . .. . -- -. . - - - -
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy