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________________ RAM जैनपदसागर प्रथमभागजनपुराण बखानी ॥म्हेतो०॥३॥ भूधरको सेवा: वर दीजै, मैं जाचक तुम दानी ॥ म्हेतो०॥४॥ . ६६ । राग सोरठ। : . खामीजी सांची सरन तिहारी ॥स्वामीजी०॥ टेक॥ समरथ शांत सकल गुन पूरे, भयो भरोसो भारी॥ स्वामीजी० ॥१॥ जनमजरा जगवैरी जीते, टेव मरनकी टारी । हमहूको अजरामर करियो, भरियो आस हमारी ॥ स्वामीजी० ॥ ॥ २॥ जनमें मरै धरै तन फिर फिर, सो साहिव संसारी । भूधर परदालिद क्यों दलि है, जो है आप भिख री ॥ स्वामीजी० ॥३॥ ६७। राग ख्याल। - नैननिको बान परी दर्शनकी ॥ टेक ॥जिनमुखचंद चकोर चित्त मुझ, ऐसी प्रीति करी ॥ नैननिको ॥ १॥ अवर अदेवनके चितवनकी अब चितचाहटरी । ज्यों सब धूलि दबै दिशि दिशिकी, लागत मेघझरी ॥ नैननिको० ॥२॥ छबी समाय रही लोचनमें, विसरत नाहि
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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