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________________ - २. जैनपदसागर प्रथममाग॥टेक ॥ तारिए तारिए अधम उघारिए, उथाः रिए, तुम करुनाके कंद ॥ एजी० ॥१॥ हस्तिनापुर जनमें जग जाने, विश्वसेननृपनंद। एजी० ॥२॥धनि वह माता एरा देवी, जिन जाए जगचंद ॥ एजी० ॥३॥ भूधर विनवे । दूर करो प्रभु, सेवकके भवदंद ॥ एजी०॥४॥ । ६३ । राग धनासरी। शेष सुरेश नरेश र तोहि, पार न कोई पावे. जू ॥ शेष ॥टेक ॥ काँपै नपत व्योम विलसत सों, को तारे गिन लावै जू ॥ शेष० ॥१॥ कान सुजान मेध-बूंदनकी, संख्या समुझ सुनाने ॥ शेष० ॥२॥ भूधर सुजस-गीत-संपूरन गणपति भी नहिं गावैजू ॥ शेष०॥३॥ ...... ६४ । राग रामकली। 'आदिपुरुष मेरी आस भरो जी। अवगुन मेरे माफ करो.जी.आदि० ॥टेक ॥ दीनदः, गाल विरदं विसरो जी,कै विनतीमोरी श्रवण १ किससे । २ आकाश । ३ विलस्तोंसे । ४ गणधर: . . . | .
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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