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________________ . ' ___जैनपदसागर प्रथममाग memins तनक नहिं त्रिपते, आनंदजनक कनक-वरण ॥ अजित०॥१॥ करुणा भीजै वायक जिनके गणनायक उर आभरणं । मोह महारिपु घायक सायक, सुखदायक दुखछय करणं । अजित ॥ २॥ परमातम प्रभु पतित-उधारन, वारणलन्छन-पगधरणं । मनमेथमारण, विपति विदा रंण, शिवकारण तारणतरणं ॥ अजित० ॥३॥ भव-आताप-निकंदन-चंदन, जगवंदन बॉछा भरणं । जय जिनराज जगत वंदत जिह, जन सुघर वंदत चरणं ॥ अजित० ॥ ४॥ राग काफी। - सौमघर खामी, मैं चरननका चेरा। इस असार संसारमै कोई, अवर न रच्छक मेरा॥ सीमंघर० टेका। लख चौरासी जोनिमें में, फिर फिर कीना फेरा। तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दुःख धनेश । सीमंघर० ॥ १॥ भाग उदयतें पाइया ..९ वचन १ २ नाश करनेवाला । ३ बा-तीर । " हाथीको बिहः । . लासको मारनेवालें । ६.अपार । । - -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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