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________________ हजूरी पद संग्रह.. १५४१२ "ध्यानकृपान पानि गहि, ततछिन ताकी थिति भानी ॥ हे जिन० ॥ १ ॥ सुप्त अनादि अविद्या: निद्रा, जिन जन निजसुधि विसरानी । है सचेत तिनि निजनिधि पाई, श्रवन सुनी जब तुम वानी ॥ हे जिन० ॥ २ ॥ मंगलमय तू जगमें उत्तम, तुही सरन शिवमगदानी | तुम-पद-सेवा परम औपत्री, जन्मजेरामृत -गद-हानी ॥ हे जिन० || ३ || तुमरे पंचकल्यानकमाहीं, त्रिभु वन-मोद-दशा ठानी | विष्णु, विदंवर, जिष्णु, दिगंबर, बुध. शिव, कहि ध्यावत ध्यानी ॥ हे जिन० ॥ ४ ॥ सर्व- दर्व गुनपर जय-परनति, तुम सुबोंधर्मे नहिं छानी । तातें दौलदास उरआशा, प्रगट करो निजरससानी ॥ हें जिन० ॥ ५ ॥ ( ३४ ) हो तुम त्रिभुवनतारी हो जिनजी, मो भवजलधि क्यों न तारत हो ? हो तुम० ॥टेक॥ अर्जुन कियो निरंजन तातैं, अधम उधार- विरद धारत १ जन्मजरामरनरूपी रोग । २ अंजनचोरको । ३ कर्मरहित- 1:
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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